Saturday, August 24, 2019

गुजारा भत्ता देने वाले पिता को बेटी से मिलने का भी हक : दिल्‍ली हाईकोर्ट

पिता बेटी को जन्मदिन, नियमित अंतराल पर देखने का हक रखता है : दिल्‍ली हाईकोर्ट .अदालत ने दिल्ली के एक व्यक्ति की याचिका को निपटाते हुए यह फैसला सुनाया. 

नई दिल्‍ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक व्यक्ति को स्कूल में उसकी बेटी से मिलने की अनुमति देते हुए कहा कि एक पिता जो अपनी बेटी के लिए गुजाराभत्ता देने को तैयार और इसका इच्छुक है, वह नियमित अंतराल पर या कम से कम उसके जन्मदिन पर उससे मिलने का हकदार भी है. अदालत ने उस व्यक्ति को अपनी बेटी से महाराष्ट्र के लोनावाला में उसके जन्मदिन, त्यौहारों या तीन महीने में एक बार मिलने की अनुमति दी, जिसने दावा किया था कि वह बीते तीन वर्ष से अपनी 12 वर्षीय बेटी से नहीं मिला है. न्यायमूर्ति प्रदीप नंद्राजोग और न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'वैसे यह याचिका पक्षों के मिलने के अधिकार से संबंधित नहीं है, एक पिता जो अपनी बेटी के लिए गुजाराभत्ता देने के लिए तैयार और इच्छुक है, वह अपनी बेटी को कम से कम त्यौहारों, उसके जन्मदिन या नियमित अंतराल पर देखने का भी हक रखता है'. अदालत ने दिल्ली के एक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका को निपटाते हुए यह फैसला सुनाया. इस याचिका में उसे अलग रह रही पत्नी को 25 हजार रुपये का मासिक गुजाराभत्ता देने के निर्देश को चुनौती दी गई थी. उससे बच्ची की शिक्षा और गुजाराभत्ता के लिए 25 हजार रुपये प्रति महीने देने के लिए भी कहा गया था.

Sunday, August 18, 2019

जाने दहेज स्त्रीधन

दहेज और स्त्रीधनशेयर करें सुप्रीम कोर्ट ने हाल में दहेज मामलों को लेकर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पति के परिजनों को सिर्फ इसआधार पर दहेज केस में शामिल नहीं कर लेना चाहिए कि शिकायती ने उनका नाम लिया है या एफआईआर में उनका नाम है। दहेज मामले में कानून क्या है और किस तरह की कार्रवाई का प्रावधान है, बता रहे हैंराजेश चौधरी:दहेज कानून के तहत किसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है?दहेज लेना और देना, दोनों ही जुर्म है। 1961 में दहेज निरोधक कानून बनाया गया। 1983 में आईपीसी की धारा-498 ए बनाई गई, जिसके तहत दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने पर पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।क्या दहेज देना भी जुर्म है?दहेज निरोधक कानून में दहेज लेना और देना, दोनों को जुर्म माना गया है। दहेज निरोधक कानून की धारा-8 कहती है कि दहेज देना और लेना, दोनों संज्ञेय अपराध हैं। दहेज लेने और देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है।क्या लड़की वालों पर दहेज देने का केस दर्ज हो सकता है?दहेज प्रताड़ना के मामलों में अक्सर शिकायती बयान देते हैं कि लड़के वालों की मांग पूरी करने के लिए शादी में उनकी तरफ से इतना दहेज दिया गया, शादी के लिए इतना खर्च किया गया आदि। सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल लॉयर डी. बी. गोस्वामी का कहना है कि पुलिस को ऐसे मामलों की छानबीन के दौरान काफी सजग रहने की जरूरत है। अगर रेकॉर्ड में दहेज देने की बात हो तो लड़की पक्ष पर कार्रवाई हो सकती है।दहेज की मांग करने पर क्या कार्रवाई हो सकती है?धारा-4 के मुताबिक दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर वर पक्ष दहेजकी मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है। केस साबित होने पर 2 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।दहेज प्रताड़ना के साथ क्या दूसरी धाराएं भी लगाई जा सकती हैं?1983 में धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) और 1986 में धारा-304 बी (दहेज हत्या) का प्रावधान किया गया। शादी के 7 साल के दौरान अगर पत्नी की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाए और उससे पहले दहेज के लिए उसे प्रताडि़त किया गया हो तो दहेज प्रताड़ना के साथ-साथ दहेज हत्या का भी केस बनताहै। इसके अलावा दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर पुलिस 498 ए के साथ-साथ धारा-406 (अमानत में खयानत) का भी केस दर्ज करती है। लड़की का स्त्रीधन अगरउसके ससुरालियों ने अपने पास रख लिया है तो अमानत में खयानत का मामला बनता है।स्त्रीधन क्या है और दहेज किसे कहते हैं?शादी के वक्त जो उपहार और जेवर लड़की को दिए गए हों, वे स्त्रीधन कहलाते हैं। इसके अलावा लड़के और लड़की, दोनों को कॉमन यूज के लिए भी जो फर्नीचर, टीवी या दूसरी चीजें दी जाती हैं, वे भी स्त्रीधन के दायरे में रखी जाती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार है और इसे दहेज नहीं माना जाता। वहीं शादी के वक्त लड़के को दिए जाने वाले जेवर, कपड़े, गाड़ी, कैश आदि दहेज कहलाता है।

Friday, October 12, 2018

पति की कमायी पर ही आश्रित नहीं रहा जा सकता है : कोर्ट

दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में महिला के मासिक अंतरिम गुजारा भत्ते में इजाफा करने से यह कहकर इनकार कर दिया है कि यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह घर पर ही बेकार बैठी रहे और अपने पति की कमायी पर ही आश्रित रहे क्योंकि वह अपने पति से कहीं अधिक पढ़ी लिखी है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर के त्रिपाठी ने महिला को मिलने वाले 5,500 रुपये के मासिक अंतरिम भत्ते में इजाफा कर उसे 25,000 रुपये करने की मांग वाली उसकी याचिका खारिज कर दी और यह भी कहा कि वह अलग हो चुके अपने पति से कहीं अधिक पढ़ी लिखी है. न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता खुद एक शिक्षित महिला है और वह प्रतिवादी (अपने पति) से कहीं अधिक शिक्षित है. महिला के पास एमए, बीएड और एलएलबी जैसी डिग्रियां हैं. ऐसा नहीं लगता कि वह घर पर बेकार बैठी रहे और प्रतिवादी की ही कमायी पर आश्रित रहे.’’ वर्ष 2008 में महिला को हर महीने 5,000 रुपये बतौर गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था और वर्ष 2015 में इस राशि में 10 प्रतिशत का इजाफा किया गया. महिला ने इन आदेशों के खिलाफ अपनी अर्जी में इसे बढ़ाकर 25,000 रुपये करने की मांग की थी.

 बहरहाल, सत्र अदालत ने वर्ष 2015 के मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को कायम रखा और कहा कि अदालत समाज में प्रचलित व्यावहारिक वास्तविकताओं पर गौर करती है. अदालत ने कहा कि महिला ने गुजारा भत्ते में वृद्धि की मांग का न तो कारण बताया और न ही यह साबित किया कि उसके खर्च में वृद्धि कैसे

Monday, October 8, 2018

पति पर पत्नी के द्वारा झूठा केस करना माना जाएगा क्रुअल्टी, होगा तलाक का आधार : सुप्रीम कोर्ट

तलाक के एक मामले मे सुनवाई करते हुए झूठी शिकायत को आधार बनाते हुए शीर्ष अदालत ने पति के फेवर में तलाक की डिक्री पारित की। लेकिन साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मानजनक जीवन की जरूरतों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 50 लाख रुपये एक मुश्त गुजारा भत्ता और एक करोड़ की कीमत का फ्लैट दे। जस्टिस एके गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, 'न्यूजपेपर में रिपोर्ट है कि पत्नी को पति के परिजनों ने पीटा और वह अनाथ की तरह रह रही है। पत्नी ने इस बारे में हाई कोर्ट से शिकायत की। जिसके बाद पुलिस जांच में केस झूठा साबित हुआ। फिर पति पर जबरन घर में घुसने और मारपीट का केस दर्ज कराया और पुलिस ने छानबीन में पाया कि केस झूठा है और महिला ने खुद ही खुद को चोट पहुंचाई थी। इससे साफ है कि पत्नी ने झूठे आरोप लगाए। हो सकता है कि तलाक की अर्जी के बाद वह गुस्से में केस किया हो, लेकिन पत्नी को इस आड़ में इसकी इजाजत नहीं मिल सकती कि वह झूठा केस करे।' महिला के वकील ने कहा कि मेरी मुवक्किल (पत्नी) की गलती नहीं है और वह शादी में बने रहना चाहती है ऐसे में अर्जी खारिज होनी चाहिए, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस दलील को नकार दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आरोप लगाता है और इस पर कोई एक्शन न हो और ट्रायल के बाद आरोपी बरी हो जाए तो ऐसे आरोप क्रुअल्टी नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन झूठी शिकायत की गई हो जिसमें कोई संदेह नहीं है तो ऐसी शिकायत क्रुअल्टी के दायरे में आएगी है। बताते चलें कि इस वक्त महिला अपने पति की मां की प्रॉपर्टी में रह रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को उसी इलाके में एक करोड़ का फ्लैट दे और इसके लिए फंड ट्रांसफर करे और तब तक महिला उसी घर में रहेगी। क्या है मामला? 1989 में कपल की शादी हुई थी। शादी के बाद 1990 में बच्चे हुए। 1999 तक सबकुछ ठीक चला। बाद में दोनों पति के पैरेंट्स से अलग दूसरे घर में रहने लगे। 19 मार्च, 2000 को पति ने पत्नी का साथ छोड़ दिया और 25 मार्च को तलाक की अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद पत्नी ने अपने पति के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए। साथ ही उसने सीएम से लेकर राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तक को पत्र लिखा। मामले की छानबीन हुई और तमाम शिकायतें झूठी पाई गईं। फिर महिला ने जबरन घर में घुसने और मारपीट का पति पर आरोप लगाया। पुलिस ने केस दर्ज कर छानबीन की और पाया कि पत्नी ने खुद ही अपने को चोट पहुंचाई और झूठे आरोप लगाए। पति ने क्रुअल्टी को बनाया आधार इसके बाद पति ने तलाक के लिए क्रुअल्टी का ग्राउंड लिया। पति ने कहा कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ झूठा केस दर्ज कराया और उसकी मानहानि की है और ऐसे में यह क्रुअल्टी का मामला बनता है। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से अर्जी खारिज होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 

Friday, October 5, 2018

10 STEPS FOR FILING CIVIL SUITS IN INDIA


The civil suit is the complaint that we filed in any civil matter, commonly is known as the civil case. The first stage of filing civil suit in India is the presentation of the plaint. In law, plaint means an accusation or charge. All the pleadings are beginning with the plaint. The following given are should include in the plaint. It contains the name of the Court where the suit is filed. The details like name, address, and des c r i p tion of the corresponding plaintiff. Name, address and other details of the opposite person that is the defendant. The details regarding the reason and where it happens. The claim that the plaintiff asked. The following given are the several reasons that the court reject the plaint. In the plaint, there is not enough des c r i p tion of the cause. The plaintiff fails is not evaluated in the desired time limit. In the case of court fee stamp is inefficient.

In the plain, there is not sufficient cause for action. The second step to file the civil suit is that Service of Summonses’. It is a type of instrument that is used in the courts to instigate the civil action.  The person to whom the summons is issued should appear on the court or the respective lawyer of the person who is very well to know about to reply all the questions. The third step is that the advent of the corresponding parties. The day in which the summons is produced should appear on the court. The court schedules another convenient day for the parties if the corresponding party does not appear in the court.

The fourth step in Defendant is presenting the statement in a written format to defend him. The defendant feels that he/she is prevented by the defense cause and passing of expertise is happened there are some possible ways are opened to him. The one thing is that they can go to appeal against the decree. Can applying for review; another one is set apart the exparte decree. The yet another step is issue settlement. Plaintiff presenting the evidence, Cross-examination process by the defendant, presenting evidence by the defendant, a plaintiff can cross-examine the evidence,  urgings by both sides and finally the order of the suit. Civil Procedure Code 1908 (CPC) contains the procedures for the trial in civil suits and it also includes the different stages. The Court under Order XXI of CPC contains all the process of execution of the decree and the orders. As per the Order XXIII of CPC the withdrawn procedure or the compromise regarding the suit has happened. Temporary injunction and Interlocutory orders are possible through the Order XXXIX of CPC. 

Article Resourec:  www.pathlegal.in/10-Steps-for-Filing-Civil-Suits-in-India-blog-1880173

Case Against Girl Family


आदलत सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़ी आईपीसी की धारा 498ए पर एक बड़ा फैसला



आदलत सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़ी आईपीसी की धारा 498ए पर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार पर दहेज का केस करती है और वह झूठा पाया जाता है, तो ऐसी स्थिति में पति को तलाक लेने का अधिकारहोगा.अदालत का ये बयान के.श्रीनिवास और के सुनीता ( पति-पत्नी) के केस की सुनवाई के दौरान आया.इस केस में कोर्ट ने दोनो का रिश्ता खत्म करने
की इजाजत देते हुए कहा, सुनवाई के दौरान हमने स्पष्ट तौर पर पाया कि पत्नी की तरफ से एक झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई.इस तरह की शिकायत वैवाहिक जीवन में हो रही क्रूरता को सामने ला देती है.इसी के साथ कोर्ट ने दोनों को अलग होने पर सहमति जताई.
आदलत सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़ी आईपीसी की धारा 498ए पर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार पर दहेज का केस करती है और वह झूठा पाया जाता है, तो ऐसी स्थिति में पति को तलाक लेने का अधिकारहोगा.अदालत का ये बयान के.श्रीनिवास और के सुनीता ( पति-पत्नी) के केस की सुनवाई के दौरान आया.इस केस में कोर्ट ने दोनो का रिश्ता खत्म करने की इजाजत देते हुए कहा, सुनवाई के दौरान हमने स्पष्ट तौर पर पाया कि पत्नी की तरफ से एक झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई.इस तरह की शिकायत वैवाहिक जीवन में हो रही क्रूरता को सामने ला देती है.इसी के साथ कोर्ट ने दोनों को अलग होने पर सहमति जताई.
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Supreme Court of India
K. Srinivas vs K. Sunita on 19 November, 2014
Bench: Vikramajit Sen, Prafulla C. Pant
                                                                             REPORTABLE


                        IN THE SUPREME COURT OF INDIA

                        CIVIL APPELLATE JURISDICTION

                       CIVIL APPEAL No. 1213  OF 2006


K.SRINIVAS                                   .….. APPELLANT


                       vs


K. SUNITA                                          ….. RESPONDENT


                               J U D G M E N T
VIKRAMAJIT SEN,J.
1 In this Appeal, counsel for the Appellant has sought to draw our attention to all the arguments that had been addressed before the High Court on behalf of the Appellant-Husband in support of his claim for dissolution of his marriage to the Respondent by a decree of divorce under Section 13(1)(ia) of the Hindu Marriage Act, 1955. We have, however, restricted him to the ground of alleged cruelty on account of the filing of a criminal complaint by the Respondent against the Appellant and several members of his family under Sections 498A and 307 of the Indian Penal Code (IPC). We did this for the reason that if this ground is successfully substantiated by the Petitioner, we need not delve any further i.e. whether a marriage can be dissolved by the Trial Court or the High Court on the premise that the marriage has irretrievably broken down. This nature of cruelty, in the wake of filing of a false criminal case by either of the spouses, has been agitated frequently before this Court, and has been discussed so comprehensively and thoroughly that yet another Judgment on this well-settled question of law, would be merely a waste of time. A complete discourse and analysis on this issue is available in a well- reasoned judgment in K. Srinivas Rao vs. D.A. Deepa, 2013(5) SCC 226, in which numerous decisions have been cited and discussed. It is now beyond cavil that if a false criminal complaint is preferred by either spouse it would invariably and indubitably constitute matrimonial cruelty, such as would entitle the other spouse to claim a divorce. 

2 The marriage of the parties was celebrated according to Hindu rites at Hyderabad on 11th February, 1989. A male child was born to the parties on 8th May, 1991, after which the Respondent-Wife, as per her pleadings, started suffering from Sheehan’s syndrome. On the night of 29th/30th June, 1995, the Respondent left the matrimonial house and ever since then she has been living with her brother, who is a senior IAS officer. On 14th July, 1995, the Appellant filed an original petition praying for divorce on the ground of cruelty as well as of the irretrievable breakdown of their marriage. The Respondent-Wife retorted by filing a criminal complaint against the Appellant as well as seven members of his family for offences under Section 307 read with Sections 34, 148A, 384, 324 of the IPC, and Sections 4 and 6 of the Dowry Prohibition Act, 1961. It is pursuant to this complaint that the Appellant-Husband and seven of his family members were arrested and incarcerated. The Respondent-Wife also filed a petition under Section 9 of the Hindu Marriage Act, 1955 for restitution of conjugal rights. On 30th June, 2000, the Learned Vth Additional Metropolitan Sessions Judge, Mahila Court, Hyderabad, acquitted the Appellant and his family members, and this Order has attained finality. Meanwhile, by its Judgment dated 30th December, 1999, the Family Court at Hyderabad, granted a divorce to the Appellant on the ground of cruelty as also irretrievable breakdown of marriage; it rejected the Respondent’s petition under Section 9 of the Hindu Marriage Act. The Respondent-Wife successfully appealed against the said Judgment in the High Court, and it is this Order dated 7th November, 2005 that is impugned before us.

3 Irretrievable breakdown of marriage as a ground for divorce has not found statutory acceptance till date. Under Article 142 of the Constitution, the Supreme Court has plenary powers “to pass such decree or make such order as is necessary for doing complete justice in any case or order pending before it”. This power, however, has not been bestowed by our Constitution on any other Court. It is for these reasons that we have confined arguments only to the aspect of whether the filing of a false criminal complaint sufficiently proves matrimonial cruelty as would entitle the injured party to claim dissolution of marriage. It will be relevant to mention that the Law Commission of India in its Reports in 1978 as well as in 2009 has recommended the introduction of irretrievable breakdown of marriage as a ground for dissolution of marriage; the Marriage Laws (Amendment) Bill of 2013 incorporating the ground has even received the assent of the Rajya Sabha. It is, however, highly debatable whether, in the Indian situation, where there is rampant oppression of women, such a ground would at all be expedient. But that controversy will be considered by the Lok Sabha. 

4. In the case in hand, learned counsel for the Respondent-Wife has vehemently contended that it is not possible to label the wife’s criminal complaint detailed above as a false or a vindictive action. In other words, the acquittal of the Appellant and his family members in the criminal complaint does not by itself, automatically and justifiably, lead to the conclusion that the complaint was false; that only one complaint was preferred by the Respondent-Wife, whereas, in contradistinction, in K.Srinivas Rao a series of complaints by the wife had been preferred. The argument was premised on the averment that the investigation may have been faulty or the prosecution may have been so careless as to lead to the acquittal, but the acquittal would not always indicate that the Complainant had intentionally filed a false case. What should be kept in perspective, it is reasonably argued, that the Complainant is not the controlling conductor in this Orchestra, but only one of the musicians who must deliver her rendition as and when and how she is called upon to do. Secondly, according to the learned counsel, the position would have been appreciably different if a specific finding regarding the falsity of the criminal complaint was returned, or if the Complainant or a witness on her behalf had committed perjury or had recorded a contradictory or incredible testimony. Learned counsel for the Respondent-Wife states that neither possibility has manifested itself here and, therefore, it would be unfair to the Respondent-Wife to conclude that she had exhibited such cruelty towards the Appellant and her in-laws that would justify the dissolution of her marriage. 

5 The Respondent-Wife has admitted in her cross-examination that she did not mention all the incidents on which her Complaint is predicated, in her statement under Section 161 of the Cr.P.C. It is not her case that she had actually narrated all these facts to the Investigating Officer, but that he had neglected to mention them. This, it seems to us, is clearly indicative of the fact that the criminal complaint was a contrived afterthought. We affirm the view of the High Court that the criminal complaint was “ill advised”. Adding thereto is the factor that the High Court had been informed of the acquittal of the Appellant-Husband and members of his family. In these circumstances, the High Court ought to have concluded that the Respondent-Wife knowingly and intentionally filed a false complaint, calculated to embarrass and incarcerate the Appellant and seven members of his family and that such conduct unquestionably constitutes cruelty as postulated in Section 13(1)(ia) of the Hindu Marriage Act. 

6 Another argument which has been articulated on behalf of the learned counsel for the Respondent is that the filing of the criminal complaint has not been pleaded in the petition itself. As we see it, the criminal complaint was filed by the wife after filing of the husband’s divorce petition, and being subsequent events could have been looked into by the Court. In any event, both the parties were fully aware of this facet of cruelty which was allegedly suffered by the husband. When evidence was lead, as also when arguments were addressed, objection had not been raised on behalf of the Respondent-Wife that this aspect of cruelty was beyond the pleadings. We are, therefore, not impressed by this argument raised on her behalf. 

7 In these circumstances, we find that the Appeal is well founded and deserves to be allowed. We unequivocally find that the Respondent-Wife had filed a false criminal complaint, and even one such complaint is sufficient to constitute matrimonial cruelty. 

8 We, accordingly, dissolve the marriage of the parties under Section 13(1)(ia) of the Hindu Marriage Act. The parties shall bear their respective costs. 


...............................J.
[VIKRAMAJIT SEN] ...............................J.
[PRAFULLA C. PANT] New Delhi;
19th November, 2014.
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